आते लम्हों को ध्यान में रखिये
तीर कुछ तो कमान में रखिये
नजदीकियां यूँ भी निखरती हैं
फासले दरमियाँ में रखिये
वरना पर्बज़ भूल जायेंगे
इन परों को उडान में रखिए
हर खरीदार ख़ुद को पहचाने
आईने भी दुकान में रखिए
आप अपनी ज़मीं से दूर न हों
ख़ुद को यूँ आसमान में रखिए
-मुन्नवर राणा
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